इसे मैं अपने गुरु जी श्रीमान नारायण लाल जी शर्मा (आलोक विद्यालय - फतेहपुरा, उदयपुर, "राजस्थान") को समर्पित करता हूं। गुरु जी के आशीर्वाद एवं शिक्षा की वजह से हम उनके द्वारा सुझाए गए जीवन मूल्यों पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। कृपया कुछ अपना मूल्यवान समय निकाल कर इसे पढ़े एवं अपने सुझाव देवें...
"सादर चरण स्पर्श" इसी सम्बोधन के साथ हम अपने पत्र की शुरुआत किया करते थे।
खैर अब तो मोबाइल का जमाना है और एक अरसा बीत गया पत्र लिखे हुए। इसी कारण से पत्र लिखने की परंपरा भी समाप्ति की ओर अग्रसर है साथ ही सादर चरण स्पर्श का अभिवादन भी समाज में लुप्त प्राय हो रहा है।
मुझे आज भी वह दिन याद है जब हम विद्यालय में अध्यापकों का प्रतिदिन चरण स्पर्श किया करते थे एवं सभी अध्यापक गण बहुत आत्मीयता के साथ आशीर्वाद दिया करते थे।
आज भी अध्यापकों से मुलाक़ात में चरण स्पर्श की यह परंपरा मेरे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पहलु है।
चरण स्पर्श और चरण वंदना भारतीय संस्कृति में सभ्यता और सदाचार का प्रतीक है।
आज भी मैंने कई घरों में प्रातः काल माता पिता के चरण स्पर्श एवं उनके आशीर्वाद के साथ लोगों के दिन की शुरुआत होते देखी है, किन्तु जब मैं नई पीढ़ी के बच्चों एवं अन्य विद्यालयों का अवलोकन करता हूँ तब इस परंपरा को विलुप्त पाता हूँ एवं शायद इसी कारण से चरण स्पर्श करने की आदत नई पीढ़ी में समाप्त हो गई है।
अब जब घर पर किसी बुजुर्ग आना होता है तो हमारे द्वारा किया जाने वाला चरण स्पर्श देखकर बच्चे भी चरण स्पर्श करने लगते हैं।
जब हम चरण स्पर्श करते हैं तो अपना सर्वस्व सामने वाले व्यक्ति के चरणों में समर्पित कर देते हैं, चरण स्पर्श सिर्फ़ एक आदत नहीं बल्कि सामने वाले से अपनी गलतियों की क्षमा याचना का भी एक तरीका है।
अगर हमसे अनजाने में कोई गलती हुई हो तो भी इसके द्वारा हम क्षमा मांग सकते हैं एवं वह व्यक्ति आशीर्वाद स्वरूप हमारी सभी गलतियों को क्षमा भी कर देता है। इससे दोनों के मध्य कटुता समाप्त हो कर अनुरक्ति के भाव उत्पन्न होते हैं।
जैसा कि अब नई पीढ़ी के अंदर यह परंपरा नगण्य-सी है इसीलिए उन्हें अपनी गलतियों को स्वीकार करने एवं क्षमा याचना करने में बहुत तकलीफ होती है।
परिणाम स्वरूप नई पीढ़ी किसी भी व्यक्ति के सामने नतमस्तक होना या झुकने को ग़लत मानने लगी है एवं इसे अपमान के रूप में देखने लगी है कहीं ना कहीं यह उनके अंदर विकसित होते हुए अहंकार का रूप ले लेता है।
वर्तमान समय में छोटी-छोटी बातों पर बच्चों का गुस्सा भी आम हो चला है, अब सहनशीलता भी बहुत कम देखने को मिलती है और इसी कारण से उनके मन में अन्य के प्रति कुंठा एवं वैमनस्यता घर कर जाती है।
जबकि पूर्वार्ध में हम अपने मित्रों से किसी भी तरीके के वाद-विवाद एवं विद्वेष को माफी मांग कर तुरंत समाप्त कर दिया करते थे पर आज ऐसा नहीं है इसी कारण से समाज के नवयुवकों में हमें हिंसा एवं विद्वेष की प्रवृत्ति आमतौर पर देखने को मिल रही है।
चरण स्पर्श में पैर के अंगूठे द्वारा विशेष शक्ति का संचार होता है। मनुष्य के पांव के अंगूठे में विद्युत संप्रेषणीय शक्ति होती है। यही कारण है कि अपने वृद्धजनों के नम्रतापूर्वक चरण स्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है, उससे अविद्यारूपी अंधकार नष्ट होता है और व्यक्ति की उन्नति के रास्ते खुलते जाते हैं।
कहते हैं, जो फल कपिला नामक गाय के दान से प्राप्त होता है और जो कार्तिक व ज्येष्ठ मासों में पुष्कर स्नान, दान, पुण्य आदि से मिलता है, वह पुण्य फल वृद्धजनों के पाद प्रक्षालन एवं चरण वंदन से प्राप्त होता है।
हिन्दू संस्कारों में विवाह के समय कन्या के माता-पिता द्वारा इसी भाव से वर का पाद प्रक्षालन किया जाता है।
सनातन धर्म में अपने से बड़े के आदर के लिए चरण स्पर्श उत्तम माना गया है।
चरण छूने का मतलब है पूरी श्रद्धा के साथ किसी के आगे नतमस्तक होना। इससे विनम्रता आती है एवं मन को शांति मिलती है साथ ही चरण छूने वाला दूसरों को अपने आचरण से प्रभावित करने में कामयाब होता है।
मान्यता है कि बड़े बुजुर्ग एवं विद्वान जनों के प्रतिदिन चरण स्पर्श से प्रतिकूल ग्रह भी अनुकूल में परिवर्तित हो जाते है।
जब भी हम किसी आदरणीय व्यक्ति के चरण स्पर्श करते हैं तो उनका हाथ हमारे सिर के ऊपरी भाग पर एवं हमारा हाथ उनके चरणों को स्पर्श करता है ऐसी मान्यता है कि पूजनीय व्यक्ति की पॉजिटिव एनर्जी हमारे शरीर में आशीर्वाद के रूप में प्रवेश करती है इससे हमारा आध्यात्मिक एवं मानसिक विकास होता है।
इसका एक मनोवैज्ञानिक पक्ष यह भी है कि जिन लक्ष्यों की प्राप्ति को मन में रखकर बड़ों को प्रणाम किया जाता है उस लक्ष्य को पाने का बल मिलता है एवं विद्वान जनों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं तो उसमें हम सफलता की ओर अग्रसर होते हैं।
यह एक सूक्ष्म व्यायाम भी है चरण स्पर्श से सारे शरीर की शारीरिक कसरत भी होती है झुककर पैर छूना या घुटने के बल बैठकर प्रणाम करने या अष्टांग दंडवत से शरीर लचीला बनता है एवं साथ ही आगे झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है।
ध्यान रखने योग्य बात है कि केवल उन्हीं का चरण स्पर्श करना चाहिए जिनका आचरण ठीक हो, चरण एवं आचरण के बीच भी सीधा सम्बंध होता है।
चरण स्पर्श करने का फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है इन्हीं कारणों से बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम एवं संस्कार का रूप दे दिया गया है।
यह हमारे संस्कार ही हैं जो व्यक्ति को शालीनता, सहनशीलता एवं सभ्य व्यवहार की तरफ मोड़ते हैं तथा उन्हें अपने जीवन को सही तरीके से मानवीय मूल्यों के आधार पर जीने की शिक्षा देते हैं।
आज समय आ गया है जब नई पीढ़ी को अपने संस्कारों से पुनः जुड़ना आवश्यक हो गया है जिससे कि हम मानवता को पुनः उसी रूप में स्थापित करें जिससे कि सभ्य समाज का निर्माण हो सके।
रवि की कलम से....
Beautiful write up and true to the core. Very well written !! Way to go bhaiya!! Isi baat par - "sadar charan sparsh" !!
ReplyDeleteध्यान रखने योग्य बात है कि केवल उन्हीं का चरण स्पर्श करना चाहिए जिनका आचरण ठीक हो, चरण एवं आचरण के बीच भी सीधा सम्बंध होता है।
DeleteVery Nice
ReplyDeleteधन्यवाद्...
ReplyDeleteधन्यवाद सौरभ आपके समय एवं सलाह के लिए...मै इसे अवश्य अमल में लाऊंगा...
ReplyDeleteVery well written write-up on our traditions.
ReplyDeleteSince this is from your heart I am sure it will touch a resonant chord with a great many traditional as well as modern fellow Indians who understand the value of our traditions.
सराहना के लिए सादर धन्यवाद...
ReplyDeleteNice ,Bahut hi kubsurat ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद...
ReplyDeleteDear Ravi , it is indeed the hard fact you brought to ,many people ,who are leaving in there own paradise, at least the will try to pass on the saying of Guruji. Thanks for sharing the article . With best wishes. Uncle(Swaminathan)
ReplyDeleteआप की शुभकामनाओं के लिए सादर धन्यवाद...
Deleteभाईश्री रवि, बदलते समय में बदलते संस्कारों का परिदृश्य आपकी लेखनी से प्रतिबिंबित होता हैं। आज के दौर में बढ़ती भौतिक आवश्यक्ताओ की होड़ाहोड में लोगों ने अपने संस्कारों को भुलबिसरा दिया है ओर इसके परिणामों की बानगी अनेक परिवारों में देखने को मिलती हैं। लुप्त होते संस्कार को समय रहते संरक्षण की दिशा में विद्यालय स्तर पर ही समान रूप से सिखाए जाने की जरूरत है।
ReplyDeleteआपने मूल संस्कारों पर सशक्त रूप में लेख लिखा, इसके लिए आपको बहुत साधुवाद ।
गोपाल गोठवाल, उदयपुर ।
आदरणीय गोपाल जी भाई साहब,
Deleteहम सभी को सामूहिक रूप से नई पीढ़ी के लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता है।
आप की शुभकामनाओं के लिए सादर धन्यवाद...
रवि जी बहोत ही विचार वीनिमय से आपने ये लेख लिखा है, एक महत्वपूर्ण बात ये है कि आपने माता पिता का चरण स्पर्श भी एक एहम भूमिका निभाता है. मानो की अध्यापक , गुरुजन के चरणस्पर्श करने की परंपरा घर से ही चालू होती है. इस बात को ध्यान मे रखें.
ReplyDeleteधन्यवाद
श्रीमान,
Deleteआपके विचार और परामर्श मेरे लिए बहुमूल्य है, मार्गदर्शन के लिए साधुवाद |
कृपया अपना परिचय भी देवे...
Matured thinking. Keep it up Ravi
ReplyDeleteसराहना के लिए सादर धन्यवाद |
Deleteकृपया अपना परिचय भी देवे...